📖 - स्तोत्र ग्रन्थ

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अध्याय 80

2 (1-2) तू, जो इस्राएल का चरवाहा है, हमारी सुन; जो भेड़ों की तरह युसूफ को ले चलता है, जो स्वर्गदूतों पर विराजमान है,

3) एफ्ऱईम, बेनयामीन और मनस्से के सामने अपने को प्रकट कर। अपने सामर्थ्य को जगा और आ कर हमारा उद्धार कर।

4) ईश्वर! हमारा उद्धार कर। हम पर दयादृष्टि कर और हम सुरक्षित रहेंगे।

5) विश्वमण्डल के प्रभु-ईश्वर! तू कब तक अपनी प्रजा की प्रार्थना ठुकराता रहेगा?

6) तूने उसे विलाप की रोटी खिलायी और उसे भरपूर आँसू पिलाये।

7) हमारे पड़ोसी हमारे लिए आपस में लड़ते हैं; हमारे शत्रु हमारा उपहास करते हैं।

8) विश्वमण्डल के प्रभु! हमारा उद्धार कर। हम पर दयादृष्टि कर और हम सुरक्षित रहेंगे।

9) तू मिस्र देश से एक दाखलता लाया, तूने राष्ट्रों को भगा कर उसे रोपा।

10) तूने उसके लिए भूमि तैयार की, जिससे वह जड़ पकड़े और देश भर में फैल जाये।

11) उसकी छाया पर्वतों पर फैलती थी और उसकी डालियाँ ऊँचे देवदारों पर।

12) उसकी शाखाएँ समुद्र तक फैली हुई थीं और उसकी टहनियाँ फ़रात नदी तक।

13) तूने उसका बाड़ा क्यों गिराया? अब उधर से निकलने वाले उसके फल तोड़ते हैं।

14) जंगली सूअर उसे उजाड़ते हैं और मैदान के पशु उस में चरते हैं।

15) विश्वमण्डल के ईश्वर! वापस आने की कृपा कर, स्वर्ग से हम पर दयादृष्टि कर।

16) आ कर उस दाखबारी की रक्षा कर, जिसे तेरे दाहिने हाथ ने रोपा है।

17) तेरी दाखलता काट कर जलायी गयी है। तेरे धमकाने पर तेरी प्रजा नष्ट होती जा रही है।

18) अपने कृपापात्र पर अपना हाथ रख, उस मनुष्य पर, जिसे तूने शक्ति प्रदान की थी।

19) तब हम फिर कभी तुझे नहीं त्यागेंगे। तू हमें नवजीवन प्रदान करेगा और हम तेरा नाम ले कर तुझ से प्रार्थना करेंगे।

20) विश्वमण्डल के प्रभु-ईश्वर! हमार उद्धार कर, हम पर दयादृष्टि कर और हम सुरक्षित रहेंगे।



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