📖 - स्तोत्र ग्रन्थ

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अध्याय 147

1) अल्लेलूया! अपने ईश्वर का भजन गाना कितना अच्छा है, उसकी स्तुति करना कितना सुखद है!

2) प्रभु येरूसालेम को पुनः बनवाता और इस्राएली निर्वासितों को एकत्र करता है।

3) वह दुःखियों को दिलासा देता है और उनके घावों पर पट्टी बाँधता है।

4) वह तारों की संख्या निश्चित करता और एक-एक को नाम ले कर पुकारता है।

5) हमारा प्रभु महान् सर्वशक्तिमान् और सर्वज्ञ है।

6) वह दीनों को सँभालता और विधर्मियों को नीचे गिराता है।

7) धन्यवाद देते हुए प्रभु का गीत गाओ, सितार बजाते हुए प्रभु का भजन सुनाओ।

8) वह आकाश को बादलों से आच्छादित करता, पृथ्वी पर पानी बरसाता और पर्वतों पर घास उगाता है।

9) वह पशुओं को चारा देता है और कौओं के बच्चों को भी, जो उसे पुकारते हैं।

10) वह युद्धाश्व की शक्ति पर प्रसन्न नहीं होता और मनुष्यों के बल को महत्व नहीं देता।

11) प्रभु श्रद्धालु भक्तों पर प्रसन्न होता है, उन लोगों पर, जो उसकी कृपा का भरोसा करते हैं।

12) येरूसालेम! प्रभु की स्तुति कर। सियोन! अपने ईश्वर का गुणगान कर।

13) उसने तेरे फाटकों के अर्गल सुदृढ़ बना दिये, उसने तेरे यहाँ के बच्चों को आशीर्वाद दिया।

14) वह तेरे प्रान्तों में शान्ति बनाये रखता और तुझे उत्तम गेहूँ से तृप्त करता है।

15) वह पृथ्वी को अपना आदेश देता है, उसकी वाणी शीघ्र ही फैल जाती है।

16) वह ऊन की तरह हिम बरसाता और राख की तरह पाला गिराता है।

17) वह ओले के कण छितराता है। ठण्ड के सामने कौन टिक सकता है?

18) वह आदेश देता है और बर्फ पिघलती है। वह पवन भेजता है और जलधाराएँ बहती हैं।

19) वह याकूब को अपना आदेश देता और इस्राएल के लिए अपना विधान घोषित करता है।

20) उसने किसी अन्य राष्ट्र के लिए ऐसा नहीं किया। उसने उनके लिए अपने नियम नहीं प्रकट किये। अल्लेलूया!



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