📖 - स्तोत्र ग्रन्थ

अध्याय ➤ 01- 02- 03- 04- 05- 06- 07- 08- 09- 10- 11- 12- 13- 14- 15- 16- 17- 18- 19- 20- 21- 22- 23- 24- 25- 26- 27- 28- 29- 30- 31- 32- 33- 34- 35- 36- 37- 38- 39- 40- 41- 42- 43- 44- 45- 46- 47- 48- 49- 50- 51- 52- 53- 54- 55- 56- 57- 58- 59- 60- 61- 62- 63- 64- 65- 66- 67- 68- 69- 70- 71- 72- 73- 74- 75- 76- 77- 78- 79- 80- 81- 82- 83- 84- 85- 86- 87- 88- 89- 90- 91- 92- 93- 94- 95- 96- 97- 98- 99- 100- 101- 102- 103- 104- 105- 106- 107- 108- 109- 110- 111- 112- 113- 114- 115- 116- 117- 118- 119- 120- 121- 122- 123- 124- 125- 126- 127- 128- 129- 130- 131- 132- 133- 134- 135- 136- 137- 138- 139- 140- 141- 142- 143- 144- 145- 146- 147- 148- 149- 150-मुख्य पृष्ठ

अध्याय 99

1) प्रभु राज्य करता है। राष्ट्र भयभीत हों। वह केरूबों पर विराजमान है। पृथ्वी काँप उठे।

2) प्रभु सियोन में महान् है। वह सब राष्ट्रों से ऊँचा है।

3) वे उसके विराट् एवं श्रद्धेय नाम का गुणगान करें। प्रभु पवित्र है।

4) शक्तिशाली न्यायप्रिय राजा! तूने अपरिवर्तनीय न्याय स्थापित किया, तू याकूब में निष्पक्षता से न्याय करता है।

5) हमारे प्रभु-ईश्वर को धन्य कहो, उसके पावदान को दण्डवत् करो। प्रभु पवित्र है।

6) हारून और मूसा उसके पुरोहित थे, समूएल उसकी उपासना करता था। उन्होंने प्रभु की आज्ञाओं और नियमों का पालन किया।

7) उसने बादल के खम्भे में से उन से बातें कीं। उन्होंने प्रभु की आज्ञाओं और नियमों का पालन किया।

8) हमारे प्रभु-ईश्वर! तूने उनकी प्रार्थना सुनी। तूने उन्हें अपराध का दण्ड दिया, किन्तु उन्हें क्षमा भी प्रदान की।

9) हमारे प्रभु-ईश्वर को धन्य कहो, उसके पवित्र पर्वत को दण्डवत् करो। हमारा प्रभु-ईश्वर पवित्र है।



Copyright © www.jayesu.com