📖 - स्तोत्र ग्रन्थ

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अध्याय 27

1) प्रभु मेरी ज्योति और मुक्ति है, तो मैं किस से डरूँ? प्रभु मेरे जीवन की रक्षा करता है, तो मैं किस से भयभीत होऊँ?

2) जब कुकर्मी मुझ पर टूट पड़ते और मुझे निगलना चाहते हैं, तो वे- मेरे शत्रु और विरोधी-लड़खड़ा कर गिर जाते हैं।

3) कोई सेना भले ही मेरे सामने पड़ाव डाले, मेरा हृदय भयभीत नहीं होता। मेरे विरुद्ध भले ही युद्ध छिड़े, मेरा भरोसा दृढ़ बना रहता है।

4) मैंने प्रभु से यही वरदान माँगा है, यही मेरी अभिलाषा रही कि प्रभु की सौम्यता के दर्शन करने के लिए और उसके मन्दिर की देखरेख के लिए, मैं जीवन भर प्रभु के घर में निवास करूँ;

5) क्योंकि वह संकट के समय मुझे अपने तम्बू में सुरक्षित रखता है। वह मुझे अपने तम्बू के भीतर छिपाता है। वह मुझ ऊँची चट्टान पर खड़ा करता है।

6) अब भी मैं अपने चारों ओेर के शत्रुओं के बीच अपना मस्तक ऊँचा रखता हूँ। मुझे प्रभु के मन्दिर में जयकार के साथ बलिदान चढ़ाने और प्रभु के आदर में भजन गाने की सुविधा है।

7) प्रभु! मेरी पुकार पर ध्यान दे। मुझ पर दया कर मेरी सुन।

8) यही मेरे हृदय की अभिलाषा रही कि मैं तेरे दर्शन करूँ। प्रभु! मैं तेरे दर्शनों के लिए तरसता हूँ।

9) अपना मुख मुझ से न छिपा, अप्रसन्न हो कर अपने सेवक को न त्याग। मुझे न छोड़, तू ही मेरा सहारा रहा है। मेरे मुक्तिदाता ईश्वर! मेरा परित्याग न कर।

10) मेरे माता-पिता भले ही मुझे छोड़ दें- प्रभु मुझे अपनायेगा।

11) प्रभु! मुझे अपना मार्ग दिखा, मुझे सन्मार्ग पर ले चल, क्योंकि मेरे शत्रु मेरी घात में बैठे हैं।

12) मुझे मेरे विरोधियों की इच्छा पर न छोड़; क्योंकि झूठे गवाह मेरे विरुद्ध खड़े हो गये हैं और उनके रोम-रोम में हिंसा भरी है।

13) मुझे विश्वास है कि मैं जीवितों के देश में प्रभु की भलाई के दर्शन करूँगा।

14) प्रभु की प्रतीक्षा करो, दृढ़ रहो, साहस रखो। प्रभु की प्रतीक्षा करो।



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