📖 - प्रवक्ता-ग्रन्थ (Ecclesiasticus)

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अध्याय 18

1) जो सदा जीवित रहता है, उसने सब कुछ की सृष्टि की है। वहीं न्यायी है और सदा ही अजेय राजा बना रहता है।

2) कौन उसके कार्यो का पूरा वर्णन कर सकता है?

3) कौन उसकी महिमा का अनुसन्धान कर सकता है?

4) कौन उसके महिमामय सामर्थ्य को घोषित करेगा? कौन उसकी दयालुता का बखान करेगा?

5) उन में न तो कुछ घटाया और न कुछ बढ़ाया जा सकता है। प्रभु के चमत्कारों की थाह कोई नहीं ले सकता।

6) जहाँ मनुष्य उनके वर्णन का अन्त करता है, वहाँ उनका प्रारम्भ मात्र है। जब वह रूकता है, तो असमंजस में पड़ा रहता है।

7) मनुष्य क्या है? वह किस काम का है? उसके अच्छे और बुरे कामों का क्या अर्थ है?

8) यदि मनुष्य की आयु एक सौ वर्ष है, तो वह बहुत मानी जाती है; किन्तु अनन्त काल की तुलना में ये थोड़े वर्ष समुद्र में बूँद की तरह, रेतकण की तरह हैं।

9) इसलिए प्रभु मनुष्यों के प्रति सहिष्णु है और उन पर अपनी दया बरसाता है।

10) वह उनके हृदय के बुरे झुकाव देखता और उनका दुष्ट विरोध जानता है।

11) वह उन्हे क्षमा प्रदान करता और धर्ममार्ग दिखाता है।

12) मनुष्य अपने पड़ोसी पर ही दया दिखा सकता, किन्तु प्रभु की दया सब शरीरधारियों पर प्रकट होती है।

13) जिस तरह चरवाहा अपने झुण्ड का पथ-प्रदर्शन करता, उसी तरह वह मनुष्यों को डाँटता, दण्डित करता और शिक्षा देता है।

14) वह उन लोगों पर दया करता है, जो उसकी शिक्षा ग्रहण करते और उसकी आज्ञाओें को उत्सुकता से पालन करते हैं।

15) पुत्र! भलाई करते समय किसी को दोष मत दो और दान देते समय कटु शब्द मत बोलो।

16) क्या ओस शीतल नहीं करती? इसी प्रकार उपहार से भी अच्छा एक शब्द हो सकता है।

17) एक मधुर शब्द महँगे उपहार से अच्छा है। स्नेही मनुष्य एक साथ दोनों को देता है।

18) मूर्ख कटु शब्दों से डाँटता है और क्रोधी मनुष्य का उपहार दुःखदायी है।

19) निर्णय से पहले वकील का प्रबन्ध करो और बोलने से पहले जानकार बनो।

20) बीमारी से पहले दवा का सेवन करो, निर्णय से पहले अपनी ही जाँच करो और जाँच के समय तुम को क्षमा मिलेगी।

21) बीमारी से पहले विनम्र बनो और समय रहते अपने पापों पर पश्चात्ताप करो।

22) मन्नत पूरी करने में विलम्ब मत करो। मृत्यु तक यह काम मत टालते रहो; क्योंकि ईश्वर का पुरस्कार सदा बना रहेगा।

23) मन्नत मानने से पहले सोच-विचार करो। उस मनुष्य के समान मत बनो, जो प्रभु की परीक्षा लेता है।

24) अन्तिम समय भड़कने वाला क्रोध और दण्ड याद रखो, जब प्रभु अपना प्रभु मुँह फेर लेता है।

25) बहुतायत के दिनों में भुखमरी ओर समृद्धि के दिनों में दरिद्रता और अभाव याद रखो।

26) सुबह से शाम तक मौसम बदलता है, प्रभु की दृष्टि में यह सब क्षणभंगुर है।

27) बुद्धिमान् सब समय सावधान रहता है और जब पाप का बोलबाला हो, तो वह अपराध से बचता है।

28) हर विवेकशील व्यक्ति प्रज्ञा पहचानता और प्रज्ञासम्पन्न मनुष्य की प्रशंसा करता है।

29) नीति-वचन जानने वाले अपनी प्रज्ञा का प्रमाण देते हैं और वर्षा की तरह सूक्तियाँ बरसाते है।

30) अपनी वासनाओं का दास मत बनो और अपनी लालसाओें पर संयम रखो।

31) यदि तुम अपनी वासनाओें का दास बनोगे, तो तुम्हारे शत्रु तुम्हारा उपहास करेंगे।

32) दावतों में रुचि मत लो, इस से दुगुनी दरिद्रता आ जाती है।

33) यदि तुम्हारे पास धन न हो, तो न पेटू बनो और न मद्यप। कहीं ऐसा न हो कि तुम अपनी हानि कर बैठो।



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