📖 - प्रवक्ता-ग्रन्थ (Ecclesiasticus)

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अध्याय 41

1) मृत्यु! उस मनुष्य के लिए तेरा स्मरण कितना कटु है, जो अपनी सम्पत्ति का उपभोग करते हुए शान्ति का जीवन बिताता है,

2) उस निश्चिन्त मनुष्य के लिए, जो अपने सब कामों में सफल है और जिस में भोग-विलास करने की शक्ति रह गयी है!

3) मृत्यु! वह मनुष्य तेरे दण्ड का स्वागत करता है, जो तंगहाली में रहता और जिसकी शक्ति शेष हो रही है;

4) जो बूढ़ा हो चला है, चिन्ताओें से ग्रस्त है, हतोत्साह और निराश है।

5) तुम मृत्यु से मत डरो; उन्हें याद करो, जो तुम से पहले आये और जो तुम्हारे बाद आयेंगे। हर मनुष्य के विषय में प्रभु का यही निर्णय है।

6) सर्वोच्च प्रभु की इच्छा का विरोध क्यों करते हो? तुम चाहे दस वर्ष जियो या एक सौ या एक हजार वर्ष,

7) तुम अधोलोक में अपनी आयु के विषय में शिकायत नहीं कर सकोगे।

8) पापियों की सन्तति अभिशप्त है। वह अधर्मियों के साथ रहती है।

9) पापियों की सन्तति अपनी विरासत खो देगी और उनके वंशज सदा के लिए कलंकित होंगे।

10) पुत्र अपने दुष्ट पिता की निन्दा करेंगे, क्योंकि वे उसी के कारण कलंकित हैं।

11) विधर्मियों! धिक्कार तुम लोगो को, जो सर्वोच्च प्रभु की संहिता का परित्याग करते हो!

12) तुम अभिशाप के लिए उत्पन्न हुए हो और मरने के बाद तुम्हें अभिशाप प्राप्त होगा!

13) जो मिट्टी से निकलता, वह सब मिट्टी में मिल जाता है। इसी प्रकार अभिशाप के बाद दुष्टों का नाश होता है।

14) मनुष्य अपने शरीर के लिए शोक मनाते हैं। पापियों का अपयश सदा बना रहेगा।

15) अपने नाम की रक्षा करो, क्योंकि वह सोने के हज़ारों कोषों की अपेक्षा अधिक समय तक बना रहेगा।

16) सुखी जीवन थोड़े दिनों का है, किन्तु सुयश सदा बना रहता है।

17) अपनी प्रज्ञा छिपाने वाले मनुष्य की अपेक्षा अपनी मूर्खता छिपाने वाला मनुष्य अच्छा है। छिपी हुई प्रज्ञा और गुप्त ख़ज़ाना, दोनों किस काम के हैं?

18) पुत्र! जो शिक्षा तुम को मिली है, शान्तिपूर्वक उसके अनुसार आचरण करो।

19) मेरे विचारों का सम्मान करो।

20) बहुत-सी बातों के लिए लज्जा नहीं करनी चाहिए और हर प्रकार की लज्जा उचित नहीं होती।

21) इन बातों को लज्जाजनक मानो: माता-पिता के सामने व्यभिचार, शासक और अधिकारी के सामने झूठ,

22) न्यायाधीश और दण्डाधिकारी के सामने अपराध; सभा और जनता के सामने विद्रोह,

23) साथी और मित्र के प्रति अन्याय, पड़ोस के लोगों के सामने चोरी, ईश्वर के सत्य और विधान के प्रति शपथ-भंग,

24) भोजन के समय मेज़ पर कोहनी टेकना, लेन-देन में डाँट-फँटकार करना,

25) नमस्कार करने वाले को उत्तर नहीं देना, वेश्या की ओर ताकना, रक्त-सम्बन्धी से मुँह फेरना

26) या उसे दिया हुआ हिस्सा या उपहार दबाना,

27) परस्त्री की ओर आँख उठा कर देखना या उसकी नौकरानी के साथ घनिष्ठता स्थापित करना, -तुम उसके पलंग के पास पैर मत रखो

28) मित्रों को डाँटना, दान देने के बाद फटकारना,



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