📖 - प्रवक्ता-ग्रन्थ (Ecclesiasticus)

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अध्याय 39

1) उस व्यक्ति की बात दूसरी है, जो पूरा ध्यान लगा कर सर्वोच्च प्रभु की संहिता का मनन करता है; जो प्राचीन काल के प्रज्ञा-साहित्य का और नबियों के उद्गारों का अध्ययन करता है।

2) वह विख्यात पुरुषों की उक्तियों को सुरक्षित रखता और दृष्टान्तों की गहराई तक पहुँचने का प्रयत्न करता है।

3) वह जीवन भर सूक्तियों की गहराई का और दृष्टान्तों की पहेलियों का अध्ययन करता रहता है।

4) वह उच्च पदाधिकारियों की सेवा में उपस्थित रहता और शासकों का द्वार उसके लिए खुला है।

5) वह विदेशी राष्ट्रों का भ्रमण करता और मनुष्यों की भलाई एवं बुराई की जानकारी रखता है।

6) वह बड़े सबेरे अपने सृष्टिकर्ता प्रभु की शरण जाता और सारे हृदय से सर्वोच्च ईश्वर से विनय करता है।

7) वह अपने होंठों से प्रार्थना करता और अपने पापों की क्षमा माँगता है।

8) यदि सर्वोच्च प्रभु ऐसा चाहेगा, तो उसे बुद्धि का आत्मा प्राप्त होगा।

9) तब वह प्रज्ञापूर्ण सूक्तियाँ बोलेगा और अपनी प्रार्थना में प्रभु की स्तुति करेगा।

10) उसका परामर्श और ज्ञान विवेकपूर्ण होगा और वह ईश्वर के रहस्यों का मनन करेगा।

11) जो शिक्षा उसे प्राप्त हुई, वह उसे प्रकट करेगा और ईश्वर के विधान के नियमों पर गर्व करेगा।

12) बहुत-से लोग उसकी बुद्धि की प्रशंसा करेंगे और वह कभी नहीं भुलायी जायेगी।

13) उसकी स्मृति नहीं मिटेगी। उसका नाम पीढ़ी-दर-पीढ़ी बना रहेगा।

14) राष्ट्रों में उसकी प्रज्ञा की चरचा होगी और सभा में उसकी प्रशंसा की जायेगी।

15) यदि वह बहुत दिनों तक जीवित रहेगा, तो उसका नाम हज़ारों से महान् होगा। और यदि उसकी मृत्यु हो जायेगी, तो उसे कोई चिन्ता नहीं होगी।

16) मैं एक बार और अपने विचार प्रकट करूँगा, क्योंकि मैं पूर्णिमा के चन्द्रमा की तरह पूर्ण हूँ।

17) भक्त पुत्रों! मेरी बात सुनो और उस गुलाब की तरफ बढ़ो, जो जलस्रोत के निकट लगाया गया है,

18) लोबान की तरह सुगन्ध बिखेरो,

19) सोसन की तरह खिलो, ऊँचे स्वर में भजन सुनाओ ओैर प्रभु के सभी कार्यों के कारण उसकी स्तुति करो।

20) उसके नाम की महिमा घोषित करो, उसका स्तुतिगान करो, गीत गाते और सितार बजाते हुए इन शब्दों में उसकी स्तुति करो:

21 . "प्रभु के सभी कार्य उत्तम हैं और उसके सभी आदेश अपने समय पर पूर्ण होते हैं"। यह मत पूछो, "यह क्या है? इस से क्या लाभ?" क्येांकि अपने समय पर सब कुछ का रहस्य प्रकट हो जायेगा।

22) उसके आदेश पर पानी एकत्र हो गया, उसके शब्द मात्र से महासागर के भण्डार भर गये।

23) उसके आदेश पर उसकी इच्छा पूरी हुई, क्योंकि उसके कल्याण-कार्य में कोई भी बाधा नहीं डाल सकता।

24) सभी मनुष्यों के कार्य उसके सामने हैं और कोई भी उसकी दृष्टि से नहीं छिप सकता।

25) वह आदि से काल के अन्त तक देखता रहता है; उसकी दृष्टि में कोई बात असाधारण नहीं।

26) यह मत पूछो, "यह क्या है? इस से क्या लाभ? " क्योंकि सब कुछ का अपना-अपना प्रयोजन है।

27) उसका आशीर्वाद उमड़ती नदी के सदृश है,

28) जो सूखी भूमि को प्रलय की तरह सींचती है! जिन राष्ट्रों ने उसकी खोज नहीं की, उसका क्रोध उनका इस तरह विनाश करेगा,

29) जिस तरह उसने पानी को खारा कर दिया। सन्तों के लिए उसके मार्ग सीधे हैं, किन्तु दुष्टों के लिए वे काँटों से भरे हैं।

30) प्रारम्भ से ही अच्छे लोगों के लिए अच्छी चीज़ों की और बुरे लोगों के लिए बुरी चीज़ों की सृष्टि हुई।

31) मनुष्यों के जीवन के लिए ये अत्यावश्यक हैं: पानी, आग, लोहा, नमक, गेहूँ का मैदा, दूध, मधु, दाखरस, तेल और वस्त्र।

32) यह सब भक्तों के लिए कल्याणकारी हैं, किन्तु पापियों के लिए अहितकर होता है।

33) दण्ड देने के लिए आँधियों की सृष्टि हुई: प्रभु का कोप उनका संकट दुगुना कर देता है।

34) समय आने पर वे विनाशलीला रचती और अपने सृष्टिकर्ता का क्रोध शान्त करती हैं।

35) आग, ओले, अकाल और मृत्यु- इनकी सृष्टि दण्ड देने के लिए हुई है।

36 ़जंगली जानवरों के दाँत, बिच्छू, साँप और प्रतिशोधी तलवार, जो दुष्टों का विनाश करती है-

37) ये सब सहर्ष उसकी आज्ञा मानते हैं, इनकी उस समय के लिए सृष्टि की गयी है, जब इनकी ज़रूरत पडे़गी; समय आने पर ये उसकी आज्ञा का उल्लंघन नहीं करेंगे।

38) इसलिए प्रारम्भ से मेरी यही धारणा थी, मैंने सोच-विचार करने के बाद यह लिखा है:

39) "प्रभु के सभी कार्य उत्तम हैं, वह समय पर सब आवश्यकताएँ पूरी करता है"।

40) यह मत कहो, "यह उस से बुरा है", क्योंकि सब कुछ अपने समय पर अच्छा प्रमाणित होगा।

41) और अब हमारे हृदय से ऊँचे स्वर में गाओे और प्रभु का नाम धन्य कहो।



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