📖 - प्रवक्ता-ग्रन्थ (Ecclesiasticus)

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अध्याय 46

1) नून के पुत्र योशुआ शूरवीर योद्धा थे और भविष्यवक्ता के रूप में मूसा के उत्तराधिकारी। वह अपने नाम के अनुरूप

2) प्रभु के चुने हुए लोगों के महान् उद्धारक बने। उन्होंने इस्राएल को उसकी विरासत दिलाने के लिए आक्रामक शत्रुओें को दण्ड दिया।

3) उन्होंने कितना यश कमाया, जब वह अपने हाथ उठाते और नगरों के विरुद्ध तलवार खींचते थे।

4) कौन उनके विरुद्ध टिक सका? क्योंकि वह प्रभु के युद्ध लड़ते थे।

5) क्या सूर्य उनके हाथ से नहीं रोका गया और एक दिन दो दिनों के बराबर नहीं बना?

6) जब शत्रु उन पर चारों ओर से टूट पड़े, तो उन्होंने सर्वोच्च प्रभु की दुहाई दी। प्रभु ने उनकी प्रार्थना सुनी और ओले के बड़े-बड़े पत्थरों की वर्षा की।

7) वे शत्रु-सेना पर टूट पड़े और उन्होंने ढाल पर उतरने वालों का विनाश किया,

8) जिससे राष्ट्र जान जायें कि उनके शस्त्र कितने शक्तिशाली हैं; क्येांकि योशुआ प्रभु के लिए लड़ते थे और सर्वशक्तिमान् का अनुगमन करते थे।

9) मूसा के दिनों में वह ईमानदार बने रहे और उन्होंने यफुन्ने के पुत्र कालेब के साथ समुदाय का विरोध किया, प्रजा को पाप करने से रोका और उनका दुष्टतापूर्ण भुनभुनाना समाप्त किया।

10) इसलिए छः लाख सैनिकों में ये दो बचे और उन्होंने उस विरासत में प्रवेश किया, जहाँ दूध और मधु की नदियाँ बहती हैं।

11) प्रभु ने कालेब को बल प्रदान किया, जो उनकी वृद्धावस्था तक बना रहा। वे पहाड़ी प्रदेश में बस गये, जहाँ उनके वंशजों को विरासत मिली,

12) जिससे सभी इस्राएली यह जान जाये कि प्रभु का अनुगमन करना कितना अच्छा है।

13) प्रत्येक न्यायकर्ता ने नाम कमाया; उन में एक का भी मन विचलित नहीं हुआ। वे प्रभु से विमुख नहीं हुए।

14) धन्य है उनकी स्मृति! उनकी हड्डियाँ अपने स्थान पर फिर खिल उठें,

15) इन यशस्वी पुरुषों के पुत्रों द्वारा उनका नाम फिर चमके!

16) समूएल प्रभु के कृपापात्र और नबी थे। उन्होंने राजत्व की स्थापना की और अपनी जाति के शासकों का अभिषेक किया।

17) वह प्रभु की संहिता के अनुसार सभा में न्याय करते थे और प्रभु की कृपादृष्टि याकूब पर बनी रही। वह अपनी ईमानदारी द्वारा सच्चे नबी

18) और अपने शब्दों द्वारा सच्चे दृष्टा प्रमाणित हुए।

19) जब उनके शत्रुओें ने उन पर चारों ओर से आक्रमण किया, तो उन्होंने सर्वशक्तिमान् प्रभु से प्रार्थना की और उसे दूध पीने वाला मेमना अर्पित किया।

20) प्रभु ने आकाश में मेघगर्जन उत्पन्न किया और उसकी वाणी का महानाद सुनाई पड़ा।

21) उसने तीरुस के सेनापतियों का और सभी फिलिस्तीनी नेताओें का विनाश किया।

22) उन्होंने अपनी चिरनिद्रा के पहले ही, प्रभु और उसके अभिषिक्त को साक्षी बना कर कहा:"मैने कभी किसी का कुछ नहीं लिया, यहाँ तक कि किसी की चप्पल तक नहीं‘। उस समय किसी ने उन पर अभियोग नहीं लगाया।

23) उन्होंने मरने के बाद भी भविष्यवाणी की और राजा को उसकी मृत्यु की सूचना दी। उन्होंने प्रजा की दुष्टता दूर करने के लिए पृथ्वी की गोद में से अपनी वाणी सुनायी।



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