📖 - स्तोत्र ग्रन्थ

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अध्याय 130

1) प्रभु! गहरे गर्त में से मैं तेरी दुहाई देता हूँ।

2) प्रभु! मेरी पुकार सुन, मेरी विनती पर ध्यान दे।

3) प्रभु! यदि तू हमारे अपराधों को याद रखेगा, तो कौन टिका रहेगा?

4) तू पापों को क्षमा करता है, इसलिए लोग तुझ पर श्रद्धा रखते हैं।

5) मैं प्रभु की प्रतीक्षा करता हूँ। मेरी आत्मा उसकी प्रतिज्ञा पर भरोसा रखती है।

6) भोर की प्रतीक्षा करने वाले पहरेदारों से भी अधिक मेरी आत्मा प्रभु की राह देखती है।

7) इस्राएल! प्रभु पर भरोसा रखो; क्योंकि दयासागर प्रभु उदारतापूर्वक मुक्ति प्रदान करता है।

8) वही इस्राएल का उसके सब अपराधों से उद्धार करेगा।



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